मुंबई : महाराष्ट्र विधानसभा में मंगलवार 20 फरवरी को मराठाओं को 10% आरक्षण देने का बिल पास हो गया। CM शिंदे अब इस बिल को विधान परिषद में पेश करेंगे। वहां से पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा। शिंदे सरकार ने इस बिल के लिए एक दिन का स्पेशल सेशन बुलाया है।विधानसभा में पास होने से पहले बिल पर कैबिनेट ने मुहर लगाई। मराठा आरक्षण बिल पारित होने से मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलेगा। राज्य में 52% आरक्षण पहले से है। 10% मराठा आरक्षण जुड़ने से रिजर्वेशन लिमिट 62% हो जाएगी।
रिजर्वेशन कोटा 50% से ज्यादा होने से इस बिल को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2021 में मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया था, क्योंकि रिजर्वेशन लिमिट 50% से ऊपर हो गई थी।बिल पास होने के बाद CM शिंदे ने कहा- जो हमने बोला था, वो किया। हमने कोई राजनीतिक लाभ के लिए फैसला नहीं लिया है। मराठा समाज आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है। मराठाओं को आरक्षण मिलने से OBC या किसी अन्य समाज के आरक्षण को नुकसान नहीं होगा।
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल ने महाराष्ट्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि जो बिल पास हुआ, वह मराठा आरक्षण की मांग के अनुरुप नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इसे नहीं मानेगा। हमें OBC कोटे के तहत आरक्षण चाहिए। उन्होंने बुधवार (21 फरवरी) दोपहर मराठा समुदाय की बैठक बुलाई है।
*मराठा आरक्षण का इतिहास*
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कैटेगरी में रखा गया है। कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है।
मराठा आरक्षण की नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।
इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।
उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए। अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।
*20 जनवरी को जरांगे ने जालना से मुंबई तक निकाला था विरोध मार्च*
मनोज जरांगे मराठा आरक्षण की मांग को लेकर 20 जनवरी को जालना से मुंबई तक के लिए पदयात्रा शुरू की थी। 26 जनवरी को जरांगे और लाखों की संख्या में उनके समर्थक नवी मुंबई के वाशी पहुंचे। जरांगे ने मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल करने की चेतावनी दी थी। इस बीच महाराष्ट्र सरकार के अधिकारियों की टीम रात करीब 10 बजे वाशी पहुंची और जरांगे से मुलाकात की।
अगली सुबह 27 जनवरी को सीएम एकनाथ शिंदे नवी मुंबई पहुंचे और मनोज जरांगे से मुलाकात की। उन्होंने जरांगे की आरक्षण से जुड़ी सभी मांगें मान ली और उन्हें जूस पिलाकर उनका अनशन खत्म करवाया।
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